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Sunday, May 1, 2022

हाँ ऐसा होता है अक्सर

आंखे बंद मत करना जब सुनेगी मुझे 

वर्ण शयद रो नहीं पायेगी मेरे लिए 

हाँ ऐसा होता है अक्सर , जब मूंद  लेते है आंखे 

तो सब धुंदला हो जाता है, और दर्द भी कुछ धूमिल हो जाता है 


ना होना तू जुदा  मेरे अहसास से , कर लेना तू बजू  मेरी हर बात से 


सांसे मत धीमे कर लेना जब महकेगी मेरी खुशबू 

वरना  शयद सुन न सकेगी मेरे हर ज़ख़्म 


हाँ ऐसा होता है अक्सर , जब मूंद  लेते है आंखे 

तो सब धुंदला हो जाता है, और दर्द भी कुछ धूमिल हो जाता है 


रास्तो से कंही मुड़ न जाना जब नज़दीक़ हो मेरी रहगुजर 

वरना शयद ावाद नहीं होगा मेरा वज़ूद 


ज़ख्म हों के गर अखर  , या के पीर हो प्रखर 

हाँ ऐसा होता है अक्सर , जब मूंद  लेते है आंखे 

तो सब धुंदला हो जाता है, और दर्द भी कुछ धूमिल हो जाता है 


@प्रखर @silenecemustbeheard 


Wednesday, October 13, 2021

मिलो तो ऐसे मिलो के फिर जुदा न हो

मिलो तो ऐसे मिलो के फिर जुदा न हो 

ग़म हो रंज हो बस उस रात की सुबह न हो 


तेरी अन्हट शोखियां काफी है डूब जाने के लिए 

किस्से भी हो कहानी भी हो, बस वो बयां ना हो


ऐसे डूब जाए तू मुझमें और में तुझमें 

की रहगर दोनों में कोई और फर्क्क ना हो 


यूं तो खुदा के नेमत में कोई भी कमी नहीं 

याद ही काफी है , गम नहीं की तुम साथ ना हो


समेट लो प्रखर,  वो लम्हे अपनी यादो के 

कल क्या पता शायद, हम ही न हों |


 


ना रोया कर किसी भी बहाने से

ना रोया कर किसी भी बहाने से 

के अक्सर मुझे हिचकियां आती है 

सो जाया करसिमटकर किसी सिरहाने से

के तुझे और मुझे नींद बहुत कम आती है

 

सूरज की तपिश हो या हो शीत चांद की 

हो घेहराई सागर सी या किनारे हो दरिया की 

 

हो तकलीफ सांसों की या हवा ही मधम हो 

हो धड़कन धीमी या सिरहन हो तेरी आंहो की 

 

तू आवाज तो लगाया कर किसी भी आशियाने से 

मुझे तेरी खुशबू आज भी आती है अपने पैमाने से 

 

ना रोया कर किसी भी बहाने से 

के अक्सर मुझे हिचकियां आती है 

 

तूने देखी है दुनिया किन्हीं दूसरी नजरो से 

बहुत देर गुजरी थी तू हिज़्र की गलियों से 

 

रिवायतें और ख्वाहिशें कुछ भी बाकी नहीं है तुझसे

तुझको हो या ना हो मुझे तो उम्मीद है प्रखर से

आहट तेरे जाने की दूर तक सुनाई आती है

 

ना रोया कर किसी भी बहाने से 

के अक्सर मुझे हिचकियां आती है 

 

सो जाया कर किसी तो सिरहाने से

तुझको और मुझे भी नींद कम आती है

 


Thursday, June 6, 2019

वक़्त ही तो हूँ

अभी कुछ लम्हे ही बीते थे जब जाना मैंने
स्याह रात सा बीत जाऊंगा ,
वक़्त ही तो हूँ जर्रा जर्रा गुज़र जाऊंगा  ,
उसके पास मोहलत थी छूपा के रख लेने की..
मेरा कल जैसे बीता वैसे ही बेपरवाह सामने तो आऊंगा ।
वक़्त ही तो हूँ ......
क्यू करूँ में यूँ ग़ुजर अपने वँया
क्यू रखूँ मैं अपने हिजर यँहा
ये दुनिया नहीं बाबस्ता इन बढ़ते दर्मयानो से
ये तो चर्चा है मुफ़लिसी का मेरी  रुके ना रुके आगे बढ़ हीजाऊंगा ।
वक़्त ही तो है......
अब में क्या सिखा दूँ उसको जो ख़ुद कबीर है
मैं तो ख़ुद  शाग़िर्द हूँ,  वजह जो भी हो  क्या में प्रखर हो पाउँगा ?
वक़्त ही तो हूँ ज़र्रा ज़र्रा ग़ुजर जाऊंगा ।

@ प्रखर 

Friday, September 14, 2018

में अपने ही घर में अब दबे पाँव चलता हूँ।

गहरे दिन सा बीतता, लम्बी सी रातों सा जलता हूँ,
ना उजालों से बहलता, ना अंधेरो से डरता हूँ
में अपने ही घर में अब दवे पाँव चलता हूँ।

मेरी ख़ुशी भी वो मेरा पीर भी वो,
मेरा साया भी वो मेरा दर्पण भी वो,
अधर पे ठहरा हर लफ़्ज़, कबीर से वयां करता हूँ,
में अपने ही घर में अब दबे पाँव चलता हूँ।
@प्रखर

प्रखर का कबीर

बिन बोले बो बाँटे ख़ुशियाँ बिन रोए समझे वो पीर,
मन में उसके कोई कपट ना, तन पे ना वो डाले चीर।
देखके उसकी किलकारी हर, होता में हर रोज़ अधीर
नाम नहीं ये संदेशा है, प्रखर के पथ पर प्रथित कबीर ।
@प्रखर

Wednesday, September 14, 2016

अंधेरो में हम चिराग देखते है

हमारी बातो के उनपे हुए कितने वो जखम देखते है ,
हमसे दूर रहते है पर हमारे सितम देखते है !
हम तो रहते है तन्हा, मस्त  अपने ख्वाबो के साथ , 
थे कितने गहरे खवाबो के मेरे जज़्बात देखते है। 
हिसाब रखते है उनसे दूर रहने का हर एक पल , 
इन हिसाबो में उनका मुकाम देखते है 
प्रखर सी रात का सूरज अक्सर रौशन ही होता है , 
जागते है दिन में स्याह होक, अंधेरो में हम चिराग देखते है । 
उनसे दूरी को मानते है उनकी मजबूरी हम , 
मुकम्मल न हो सके जो वो  एहसास देखते है । 
ये वक़्त तो कट  ही जायेगा कभी हस  के कभी रोके , 
मंजिलो से हो हमेशा रहगुजर , हम ये राह देखते है । 
होश वालो को अक्सर रहती नहीं खबर दुनिया की, 
बेखबर ही सही, मद मस्त  होकर भी सब देखते है । 
क्यों  बेकद्र  किया मेरे मुकदर ने मुझे,  
मेरी कामयाबी की होगी जब बात देखते हैं । 
अंधेरो में हम चिराग देखते है ।
अंधेरो में हम चिराग देखते है ।

@प्रखर 


Monday, March 21, 2016

ज़िक्र नहीं कर सकता जिसका

ज़िक्र नहीं कर सकता जिसका
फिकर उसी की रहती है
तलब नहीं कमजोरी थी वो
इसीलिए चुप रहती है।
छुप जाते है अक्सर गम भी,
खुशी के उन फव्बॉरो से,
अम्बर के आडम्बर से
जिनकी रौनक कम रहती है।
इस पर में क्यों व्यर्थ समय दूँ
जिस पर में एक भोझ मात्र हूँ
उस पर में क्यों भला त्रस्त हूँ
जिसको में एक प्रतिपेक्ष ज्ञात हूँ।
कीमत शब्दों की होती तो,
भाव भिवोर न होती मन से
रहती है जो सदा व्यथित अब,
कुंठित न होती तन से।
प्रखर हो रहे आवेग भी उसके,
उसको प्राप्त हो मोक्ष सदा,
यही है वर भी यही श्राप है
मेरा न हो  स्पर्श कदा।

@प्रखर

एक एक पल यु बीत रहा है

एक एक पल यु बीत रहा है
मनो रेत ये भीग रहा है।
जबसे दूर हुई तू मुझसे, मेरा सब कुछ छूट रहा है।
इतनी सी मेरी गलती, उतनी सी तेरी पलटी
इतना सा वो मेरा पहरा, उतना सा वो तेरा चेहरा,
में तो विरह में जल ही रहा हूँ, तेरा दिल क्यों रूठ रहा है,
अब देखू क्या हो सकता है, क्यों सोचु क्या खो सकता है,
मुझको तो जीना है ऐसे, खुश् हु तू जो बीत रहा है।
खुद को काफिर करके देखा
तुझसे मुखबिर होके देखा, तेरा दिल रख लेंने को खुद से बहार होके देखा।
तू ही बोल क्यों चीख रहा है,
लहू मेरा अब भीग रहा है।
प्रखर कमी थी तेरे प्यार में
इतनी नमी जो देख  रहा है
अभी ये दिल टीस रहा है, कमी तेरे से चीख रहा है
इतना दर्द में बाटू किस्से, आंसू देख ये भीग रहा है,
वक़्त नहीं ये बीत रहा है, प्रखर तेरी ये कैसी व्यथा है।

@silence must be heard 

Wednesday, September 30, 2015

हर आहट पे तेरे आने का इंतज़ार कर रहा हूँ ।


हर आहट पे तेरे आने का इंतज़ार कर रहा हूँ
में अपने सपनो को तेरी आँखों में बून रहा हूँ।

तू उस पार खुश  है अपने हमनवां के साथ ,
इस पार में तन्हाई में अपना आईना चुन रहा हूँ।

चंद लम्हों का सही कुछ प्यार तो किया तूने
उन्ही लम्हों में अपनी जिंदगी बजू कर रहा हूँ

मुझे यकीन है तेरा सिला बेवजह नहीं है
जो कर रही है मुझे हिज़्रा के हवाले
तेरे अपने है बजह या है तेरा चाहने वाला
पर इस विरह की आग में, क्यों बस मेँ जल रहा हूँ।

हर आहट पे तेरे आने का इंतज़ार कर रहा हूँ
में अपने सपनो को तेरी आँखों में बून रहा हूँ।

देखता हूँ हर तरीका तेरी खबर पाने को 
अंजानो  से भी बात कर लेता हूँ तेरा हाल पाने को 
तूने सजा ली है चुप्पी अपने होठो पे , मुझे तो  फ़िक्र नई अपनी 
तेरा क्या हाल है, हर पल बस यही सोच रहा हूँ। 

मन ही मन सोचता हूँ, चल फिर से  में ही पहल कर दूँ 
फिर लगता है डर , कंही तेरी खुशी न खलल कर दूँ 
तू खुश है मेरे बिना भी , इसीलिए दूर हूँ 
तेरे साथ बीते लम्हों में अपनी जिंदगी बसर कर रहा हूँ। 

अब और क्या कहू हाल में तेरे बिना क्या है मेरा 
तू सुन नहीं सकती फिर भी में कहे जा रहा हूँ। 

हर आहट पे तेरे आने का इंतज़ार कर रहा हूँ
में अपने सपनो को तेरी आँखों में बून रहा हूँ। 

@silence must be heard