Followers

Monday, March 21, 2016

ज़िक्र नहीं कर सकता जिसका

ज़िक्र नहीं कर सकता जिसका
फिकर उसी की रहती है
तलब नहीं कमजोरी थी वो
इसीलिए चुप रहती है।
छुप जाते है अक्सर गम भी,
खुशी के उन फव्बॉरो से,
अम्बर के आडम्बर से
जिनकी रौनक कम रहती है।
इस पर में क्यों व्यर्थ समय दूँ
जिस पर में एक भोझ मात्र हूँ
उस पर में क्यों भला त्रस्त हूँ
जिसको में एक प्रतिपेक्ष ज्ञात हूँ।
कीमत शब्दों की होती तो,
भाव भिवोर न होती मन से
रहती है जो सदा व्यथित अब,
कुंठित न होती तन से।
प्रखर हो रहे आवेग भी उसके,
उसको प्राप्त हो मोक्ष सदा,
यही है वर भी यही श्राप है
मेरा न हो  स्पर्श कदा।

@प्रखर

1 comment:

  1. These lines say it all..
    इस पर में क्यों व्यर्थ समय दूँ
    जिस पर में एक भोझ मात्र हूँ
    उस पर में क्यों भला त्रस्त हूँ
    जिसको में एक प्रतिपेक्ष ज्ञात हूँ।

    Well written !!

    ReplyDelete