Followers

Wednesday, September 14, 2016

अंधेरो में हम चिराग देखते है

हमारी बातो के उनपे हुए कितने वो जखम देखते है ,
हमसे दूर रहते है पर हमारे सितम देखते है !
हम तो रहते है तन्हा, मस्त  अपने ख्वाबो के साथ , 
थे कितने गहरे खवाबो के मेरे जज़्बात देखते है। 
हिसाब रखते है उनसे दूर रहने का हर एक पल , 
इन हिसाबो में उनका मुकाम देखते है 
प्रखर सी रात का सूरज अक्सर रौशन ही होता है , 
जागते है दिन में स्याह होक, अंधेरो में हम चिराग देखते है । 
उनसे दूरी को मानते है उनकी मजबूरी हम , 
मुकम्मल न हो सके जो वो  एहसास देखते है । 
ये वक़्त तो कट  ही जायेगा कभी हस  के कभी रोके , 
मंजिलो से हो हमेशा रहगुजर , हम ये राह देखते है । 
होश वालो को अक्सर रहती नहीं खबर दुनिया की, 
बेखबर ही सही, मद मस्त  होकर भी सब देखते है । 
क्यों  बेकद्र  किया मेरे मुकदर ने मुझे,  
मेरी कामयाबी की होगी जब बात देखते हैं । 
अंधेरो में हम चिराग देखते है ।
अंधेरो में हम चिराग देखते है ।

@प्रखर 


12 comments: