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Thursday, June 6, 2019

वक़्त ही तो हूँ

अभी कुछ लम्हे ही बीते थे जब जाना मैंने
स्याह रात सा बीत जाऊंगा ,
वक़्त ही तो हूँ जर्रा जर्रा गुज़र जाऊंगा  ,
उसके पास मोहलत थी छूपा के रख लेने की..
मेरा कल जैसे बीता वैसे ही बेपरवाह सामने तो आऊंगा ।
वक़्त ही तो हूँ ......
क्यू करूँ में यूँ ग़ुजर अपने वँया
क्यू रखूँ मैं अपने हिजर यँहा
ये दुनिया नहीं बाबस्ता इन बढ़ते दर्मयानो से
ये तो चर्चा है मुफ़लिसी का मेरी  रुके ना रुके आगे बढ़ हीजाऊंगा ।
वक़्त ही तो है......
अब में क्या सिखा दूँ उसको जो ख़ुद कबीर है
मैं तो ख़ुद  शाग़िर्द हूँ,  वजह जो भी हो  क्या में प्रखर हो पाउँगा ?
वक़्त ही तो हूँ ज़र्रा ज़र्रा ग़ुजर जाऊंगा ।

@ प्रखर 

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