ना रोया कर किसी भी बहाने से
के अक्सर मुझे हिचकियां आती है
सो जाया कर, सिमटकर किसी सिरहाने से
के तुझे और मुझे नींद बहुत कम आती है
सूरज की तपिश हो या हो शीत चांद की
हो घेहराई सागर सी या किनारे हो दरिया की
हो तकलीफ सांसों की या हवा ही मधम हो
हो धड़कन धीमी या सिरहन हो तेरी आंहो की
तू आवाज तो लगाया कर किसी भी आशियाने से
मुझे तेरी खुशबू आज भी आती है अपने पैमाने से
ना रोया कर किसी भी बहाने से
के अक्सर मुझे हिचकियां आती है
तूने देखी है दुनिया किन्हीं दूसरी नजरो से
बहुत देर गुजरी थी तू हिज़्र की गलियों से
रिवायतें और ख्वाहिशें कुछ भी बाकी नहीं है तुझसे
तुझको हो या ना हो मुझे तो उम्मीद है प्रखर से
आहट तेरे जाने की दूर तक सुनाई आती है
ना रोया कर किसी भी बहाने से
के अक्सर मुझे हिचकियां आती है
सो जाया कर किसी तो सिरहाने से
तुझको और मुझे भी नींद कम आती है
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