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Wednesday, October 13, 2021

ना रोया कर किसी भी बहाने से

ना रोया कर किसी भी बहाने से 

के अक्सर मुझे हिचकियां आती है 

सो जाया करसिमटकर किसी सिरहाने से

के तुझे और मुझे नींद बहुत कम आती है

 

सूरज की तपिश हो या हो शीत चांद की 

हो घेहराई सागर सी या किनारे हो दरिया की 

 

हो तकलीफ सांसों की या हवा ही मधम हो 

हो धड़कन धीमी या सिरहन हो तेरी आंहो की 

 

तू आवाज तो लगाया कर किसी भी आशियाने से 

मुझे तेरी खुशबू आज भी आती है अपने पैमाने से 

 

ना रोया कर किसी भी बहाने से 

के अक्सर मुझे हिचकियां आती है 

 

तूने देखी है दुनिया किन्हीं दूसरी नजरो से 

बहुत देर गुजरी थी तू हिज़्र की गलियों से 

 

रिवायतें और ख्वाहिशें कुछ भी बाकी नहीं है तुझसे

तुझको हो या ना हो मुझे तो उम्मीद है प्रखर से

आहट तेरे जाने की दूर तक सुनाई आती है

 

ना रोया कर किसी भी बहाने से 

के अक्सर मुझे हिचकियां आती है 

 

सो जाया कर किसी तो सिरहाने से

तुझको और मुझे भी नींद कम आती है

 


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