गहरे दिन सा बीतता, लम्बी सी रातों सा जलता हूँ,
ना उजालों से बहलता, ना अंधेरो से डरता हूँ
में अपने ही घर में अब दवे पाँव चलता हूँ।
मेरी ख़ुशी भी वो मेरा पीर भी वो,
मेरा साया भी वो मेरा दर्पण भी वो,
अधर पे ठहरा हर लफ़्ज़, कबीर से वयां करता हूँ,
में अपने ही घर में अब दबे पाँव चलता हूँ।
@प्रखर
ना उजालों से बहलता, ना अंधेरो से डरता हूँ
में अपने ही घर में अब दवे पाँव चलता हूँ।
मेरी ख़ुशी भी वो मेरा पीर भी वो,
मेरा साया भी वो मेरा दर्पण भी वो,
अधर पे ठहरा हर लफ़्ज़, कबीर से वयां करता हूँ,
में अपने ही घर में अब दबे पाँव चलता हूँ।
@प्रखर
Wahhh
ReplyDeletegood चलते जाओ दबे पाँव रास्ता मिल ही जायेगा।
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